Monday, November 24, 2008

दुस्साहस

क्यों अंतर्यामी बने हुए थे , क्यों विवश किया मुझें कहने को /
क्यों संत की परीक्षा ली तुमने , क्यों कष्ट दिया उन्हें सहने को /
क्यों निष्ठुर हो गए तुम इतने , क्यों उतर रहे जग के गहनों को /
क्यों जगह जगत में कम पड़ गई , मुनि तरुण सागर के रहने को /
जो प्रचार करें जग में तेरा , जो दिन रात करें गुण गाँन तेरा /
जो जीवन सफल करें औरो का ,बालक सम ध्यान रखें मेरा /
जो बंधन काटे जीवों का , क्यों उसी को तुने आ घेरा /
तू रक्षक रहा सदा संतों का , क्यों आज नियम तुने फेरा /
शब्द आज मेरे कम क्यों पड़ गये , दुःख अपना बतलाने को /
क्यों मेरे गुरु को ही छांटा , वर्चस्व शल्य का दिखलाने को /
क्यां सारे काम ख़त्म हो गए ,तेरे करने और कराने को /
क्यों एक जान के पीछे पड़ा ,तत्पर लाखों जान गंवाने को /
अब तक मैंने कुछ नहीं माँगा , आज मेरा भी वचन ले लो /
दो लम्बी उम्र तरुण सागर को ,उपचार में उनका प्रण रख लो /
संत की बात मानकर तुम , मुझमें अपनी बात अडिग कर दो /
तुम अपनी सोची छोड़ दो अब , मेरी एक बात तुम भी रख लो /
कुछ प्रयास वैध तुम भी कर लो , कुछ दुवा आज में करता हूँ /
सामर्थ्य संत में भी कम नहीं , कुछ दुस्साहस आज मैं करता हूँ /
कुछ अधिक तो मेरे पास नहीं , जो है वह अर्पित करता हूँ /
यह जन्म संत पर न्योछावर , सौ जन्म मैं गिरवी धरता हूँ /
बात थोडी यहाँ उलझ गयी , जो दूर से शायद ना समझ पाओ /
बिना संत हम कैसे जिए , जरा आकर तो तुम समझाओ /
वह निर्लिप्त तेरे ही सम होगा , थोड़ा तो बड़प्पन दिखलाओ /
संत बचाना हमें आता है , एक बार स्वयं यहाँ पर आओ //
रचियता -
श्री हनुमान सिंह गुर्जर

6 comments:

seema gupta said...

बिना संत हम कैसे जिए , जरा आकर तो तुम समझाओ /
वह निर्लिप्त तेरे ही सम होगा , थोड़ा तो बड़प्पन दिखलाओ /
संत बचाना हमें आता है , एक बार स्वयं यहाँ पर आओ //
" bhut bhavpurn rachna hai....santon ke upper maine itne acche shabd or unkee upyogita ko nahee pdha.... bhut adhyatmik rachna hai ...."

Regards

प्रदीप मानोरिया said...

बहुत मार्मिक रचना संजय जी .... मैं भी आध्यात्मिक रूचि प्रधान व्यक्ति हूँ और आप शीघ्र ही मेरे दूसरे ब्लॉग कुन्दकुन्द कहान पर तत्वार्थ सूत्र का पद्यानुवाद अथवा उसे भावानुआद भी कहा जा सकता है देखेंगे आशा है आप को वह पसंद आयेगा
प्रदीप मानोरिया ०९४२५१३२०६०

Ashok Pandey said...

जैन मुनि तरुणसागर के कुछ प्रभावोत्‍पादक सदोपदेश पत्र पत्रिकाओं में पढ़े हैं। यह रचना पढने से प्रतीत होता है कि वे अस्‍वस्‍थ हैं। आप उन पर एक आलेख लिखकर हमें इस संबंध में जानकारी देते तो और अच्‍छा रहता। शुभकामनाएं।

अभिषेक मिश्र said...

क्या तरुण सागर जी अस्वस्थ हैं? कृपया जानकारी दें. मैंने भड़ास पर कमेन्ट देकर देखा है. मुझे तो कोई दिक्कत नहीं हुई. वैसे आप अपनी प्रतिक्रिया मुझे मेल भी कर सकते हैं.(abhi.dhr@gmail.com)

BrijmohanShrivastava said...

अत्यधिक सुंदर भावपूर्ण रचना प्रस्तुत की है आपने गुर्जर साहिब की /अभिषेक जी का आपको जवाब आही गया
दुबारा भड़ास पर कमेन्ट करना न हो तो इनसे ई मेल पर संपर्क करना

Satish Saxena said...

क्यों कहते,ईश्वर लिखते ,
है,भाग्य सभी इंसानों का !
दर्द दिलाये,क्यों बच्चे को
चित्र बिगाड़ें,बचपन का !
कभी मान्यता दे न सकेंगे,निर्मम रब को, मेरे गीत !
मंदिर,मस्जिद,चर्च न जाते,सर न झुकाएं मेरे गीत !


Read more: http://satish-saxena.blogspot.com/#ixzz1w87jSa9I