Monday, November 24, 2008
संयम
संसार में कोई भी व्यक्ति न तो पूर्ण रूपेण सुखी है और न ही पूर्ण रूपेण दुखी / इस संसार में सभी व्यक्ति को कोई सुख है तो साथ में कोई दुःख भी , तभी तो हर व्यक्ति इस संसार रूपी सागर से तिरना चाहता है / इस संसार रूपी सागर से तिरने के लिए व्यक्ति के जीवन में संयम का होना जरूरी है / संयम का संधि विच्छेद है - सम् + यम् ( सम् = पूर्ण रूप से , यम् = रोकथाम ) अथार्त विषय वासनाओ में रत अपनी इन्द्रियों व् मन को रोकना / उन पर विजय प्राप्त करना / संयम का प्रारम्भ व्यक्ति के स्वयं के जीवन से होता है / एक संयमी व्यक्ति ही दुसरे को संयम का पाठ पड़ा सकता है / एक कहावत है कि '' जलता हुवा दिया ही बुझे हुए दीये को जला सकता है '' / एक रोचक प्रसंग है कि - एक बार एक व्यक्ति अपने पुत्र को साथ लेकर एक महात्मा के पास आया और कहा कि यह मेरा पुत्र रोज़ गुड खाता है नहीं देने पर रोता है लडाई झगडा करता है बस आप इसके ये आदत छुड्वादें / महात्मा ने कहा एक महीने के बाद आना तब उपाय बताऊँगा /एक माह बाद महात्मा ने बालक को गुड नहीं खाने के बारे में बताया और बालक ने वास्तब में गुड खाना छोड़ दिया /उस व्यक्ति से रहा नहीं गया उसने महात्मा से पूछा -यदि आपके इतने से कहने मात्र से इस बालक ने गुड खाना छोड़ दिया तो आपको यह उपदेश उसी दिन दे देना चाहिए था ,एक माह इंतज़ार करने की जरूरत क्या थी /महात्मा ने कहा -जो व्यक्ति स्वयं गुड खा रहा हो उसे दूसरों को गुड गुडे का परहेज़ नहीं बताना चाहिए /इसलिए पहले मैंने स्वयं गुड खाना छोड़ा तब इस बालक को उपदेश दिया /संयम कहने का नहीं करने का विषय है ,यह बोलने का नहीं पालने का विषय है /
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2 comments:
इसलिए पहले मैंने स्वयं गुड खाना छोड़ा तब इस बालक को उपदेश दिया /संयम कहने का नहीं करने का विषय है ,यह बोलने का नहीं पालने का विषय है /
" scah kha, rishi muneyon mahtama aise he nahee puje jaty, vo vhee updesh daiten hain jis rah pr khud chulty hain.... bda hee rochak udharn diya aapne... sanyam se inssan apne aap ko kya se kya bna sktta hai, magar hum mey se kitne log iss ka palan kertyn hain, nahee jantee..or shayd mai bhe nahee...."
Regards
अच्छी कविता है ..... आपकी अध्यात्मिक अभ्रुची से मैं प्रभावित हूँ मैं भी अध्यात्मिक अभिरुचि रखता हूँ और गुरुदेव कांजी स्वामी मेरे गुरु है
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